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तुलनात्मक सरकार और राजनीति : यू के, यू एस ए, स्विटजरलैण्ड, चीन
प्रश्न- सर्वोच्च न्यायालय की कार्य-प्रणाली का विवेचना कीजिए।
उत्तर -
(Functioning of Supreme Court)
सर्वोच्च न्यायालय की कार्य प्रणाली का विवेचन हम निम्न उपशीर्षकों के माध्यम से कर सकते हैं-
1. तर्क की सुकरात प्रणाली - सर्वोच्च न्यायालय की कार्य-प्रणाली की पहली विशेषता यह है कि तर्क प्रस्तुत करने के लिए वहाँ सुकरात प्रणाली का प्रयोग होता है, जिसके अन्तर्गत वक्ता की अपेक्षा मौलिक रूप से तर्क प्रस्तुत करने को अधिक महत्व दिया जाता है। जिस प्रश्न का निर्णय देना होता है, उससे सम्बन्धित मत व व्यवस्थाओं को न्यायालय के सत्र के प्रारम्भ में ही घोषित कर दिया जाता है। न्यायालय दोनों पक्षों के प्रवक्ताओं को पूरी तरह से सुनकर उस प्रश्न पर निर्णय देता है, जो उसके समक्ष विचारार्थ प्रस्तुत किया जाता है।
2. शुक्रवार सम्मेलन - प्रत्येक सप्ताह के शुक्रवार के दिन न्यायाधीशों की बैठक होती है, जिसमें वे सुनवाई लिए हुए मामलों पर विचार करते हैं तथा यह निर्णय करते हैं कि उन मामलों पर फैसला कैसा हो। परम्परानुसार मुख्य न्यायाधीश निर्णय पर विचार प्रारम्भ करता है और उसका अन्त करता है। सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश लोग बैठक की बातों को गुप्त रखने पर विशेष ध्यान देते हैं। प्रश्न के सन्दर्भ में विभिन्न मतों को पहले से ही छपवा कर समस्त न्यायाधीशों को दे दिया जाता है, जिससे न्यायाधीश उन पर पूर्ण करके बैठक में सम्मिलित हो सकें।
3. न्यायाधीश के मतों की लिखित अभिव्यक्ति - जब कभी किसी मामले में निर्णय कर लिया जाता है तो निर्णय को लिख लिया जाता है उसे सब न्यायाधीशों की स्वीकृति के लिए वितरित कर दिया जाता है। जिस निर्णय के पक्ष में अधिकांश न्यायाधीश होते हैं, उसे बहुमत निर्णय व जिस निर्णय के पक्ष में न्यायाधीशों का अल्पमत होता है उसे अल्पमत निर्णय कहा जाता है। प्रत्येक न्यायाधीश को अपना मत देने का अधिकार होता है, क्यों न भिन्न निर्णय हो। बहुमत का निर्णय मान्य होता है।
4. पूर्व निर्णय में परिवर्तन - सर्वोच्च न्यायालय के क्रियाकलाप में ऐसा भी पाया जाता है कि पुराने निर्णय को बदल दिया जाये उसके स्थान पर पूर्णतः नवीन निर्णय व सिद्धान्तों का प्रतिस्थापन कर दिया जाये। अब तक लगभग 32 मामलों में सर्वोच्च न्यायालय ने अपने पुराने निर्णय में परिवर्तन किया है।
5. न्यायाधीशों के मतों के महत्व में समानता - न्यायालय के समक्ष सभी न्यायाधीशों के मतों का समान महत्व होता है। यह अवश्य है कि मुख्य न्यायाधीश को अन्य न्यायाधीशों की अपेक्षा वेतन अधिक मिलता है। वह न्यायालय की कार्यवाहियों की अध्यक्षता भी करता है। पर किसी मामले में निर्णय के सम्बन्ध में उसके मत का वही मूल्य होता है जो न्यायालय के अन्य न्यायाधीशों के मत का होता है। सामान्यतया प्रत्येक मुकदमे की सुनवाई कम से कम 6 न्यायाधीशों के एक मण्डल द्वारा होती है। निर्णय बहुमत से किए जाते हैं, यदि निर्णय में कम से कम 4 न्यायाधीश एकमत न हों तो सम्बन्धित मामले की सुवाई पुनः की जा सकती है।
संघीय शासन की ओर से दिए गये न्यायालयों के इतने वृहत संगठन होते हुए भी राज्यों में न्याय कार्य व संगठन में एकरूपता नहीं है। संगठन व न्याय की प्रक्रिया एवं कार्य प्रणाली की दृष्टि से एक राज्य की दूसरे राज्य की न्याय व्यवस्था से काफी भिन्नता विद्यमान है जैसाकि ऑगवरे ने कहा है- "संवैधानिक व्यवस्थाओं की अपेक्षा न्याय कार्य की अमेरिकी परम्परा (Americal Practice) राज्यों में अधिक गहरी जमा हुई है। इसके अतिरिक्त अधिकांश राज्यों में निम्न न्यायालयों में जस्टिसेज ऑफ पीस बहुत ही पुरानी परम्पराओं में ढले हुए हैं। उन्हें विधिवत न कोई कानून की शिक्षा मिली हुई होती है और न पर्याप्त वेतन ही मिलता है। परिणामतः वे अवैधानिक ढंग से आय के स्रोत ढूँढने की चेष्टा में रहते हैं जिनका बुरा प्रभाव न्याय कार्य पर भी पड़ता है।
अमेरिकी राज्यों के न्यायालयों में कार्य भार अधिकता के कारण मुकदमों के निर्णयों में विलम्ब होना स्वाभाविक हो जाता है। न्यायालयों का ढाँचा कानून की विभिन्न शाखाओं में न होकर क्षेत्रीय है। इसका परिणाम यह होता है कि न्यायालयों का ढाँचा कानून की विभिन्न शाखाओं में न होकर क्षेत्रीय है। इसका परिणाम यह होता है कि न्यायाधिकारी कानून की किसी शाखा के विशेषज्ञ नहीं हो पाते और न वे उसकी व्यवस्था ही ठीक से कर पाते हैं। अमेरिकी लेखक स्वाइडर ने स्वयं स्वीकार किया है कि "हमारे न्यायालय का संगठन विषयवार न होकर भौगोलिक होने के कारण विशिष्टीकरण पर्याप्त रूप से हीं हो पाता। प्रत्येक न्यायालय साधारणतयः एक नगर काउण्टी, जिला, क्षेत्र अथवा किसी अन्य भौगोलिक इकाई में कार्य करता है तथा उसके अन्तर्गत वह सभी प्रकार के मामलों का निपटारा करते हैं।"
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